Thursday, 17 December 2020

Ideal Mandir and Puja Room directions by Acharya Ashok Narayann Life Is Divine

                     Mandir and Puja Room directions


    Jupiter or Shiva is the lord of the north-east direction, which is also called as the as ‘Ishan kona’. It is advisable to keep the temple or Puja room in Ishan Kona”. A temple placed in the centre of the house – a region that is called as the Brahmasthan – is also said to be auspicious and can bring prosperity and good health for the inmates                        



         Do not place your mandir directly on the floor. Instead, keep it on a raised platform or pedestal. “The temple should be made of marble or wood. Ensure that you do not have multiple idols of the same God or Goddess.

 God figures in any form idol or photos placed in the temple should never


 be damaged (खंडित), as it considered is inauspicious.



          Adequate space should be there in Pooja Room so that during special pooja the entire family can sit and pray together. The temple area should have good ventilation so that proper flow of energy will be there. Puja room should always be neat and clean, free from clutter or unused items.

           

          I have observed that due to scarcity of area as in urban areas we have limitations people use to place there mandir in bedroom or even in kitchen. In such cases, hang a curtain or cover the front of the temple, when you are not using the temple. Also, when placing a temple in the kitchen or bedroom, consider that area as a sub mandal and reserve the northeast corner for it. Ideally, the idol should not be more than 10 inches.

  

           Temple should not be against a wall that has a toilet behind it or a toilet on the upper floor. Mandir should have a dome structure on its top and ensure that the entry towards the pooja room has a threshold. Below the mandir or near the mandir create a small shelf, so that incense, pooja materials and holy books can be placed in it. Do not place anything above the mandir.

 

          Simple Do’s

1.  Ground floor is the best location for Pooja Room.

2.  North-east is the best direction.

3.  Face north or east while praying.

4.  Silver, brass or copper vessels are preferred.

5.  Use light and soothing colors.

 

Simple Avoids

1.  Puja room should not be under the staircase.

2.  Idols should not be kept facing each other.

3.  Puja room should not be against a bathroom.

4.  Avoid placing a mandir in your bedroom.

The temple should give you a feeling of serenity and calmness.


Acharya Ashok Narayann

9312098199

 

Monday, 7 December 2020

अपने शरीर की रहस्यमयी ऊर्जा को जाने - आचार्य अशोक नारायण

 

 अपने अंदर की रहस्यमयी शक्तियों को कैसे जाग्रत करें?

 

अपने शरीर की रहस्यमयी ऊर्जा को जाने और पहचाने।

 


हमारे शरीर की ऊर्जा शरीर के 7 हिस्सों में निहित एवं विभाजित है।

 

1)    मूलाधार चक्र : -

 

यह शरीर का पहला चक्र है। गुदा और लिंग के बीच चार पंखुरियों वाला यह 'आधार चक्र' है। 99.9% लोगों की चेतना इसी चक्र पर अटकी रहती है और वे इसी चक्र में रहकर मर जाते हैं। जिनके जीवन में भोग, संभोग और निद्रा की प्रधानता है उनकी ऊर्जा इसी चक्र के आसपास एकत्रित रहती है।

 

चक्र जगाने की विधि : -

मनुष्य तब तक पशुवत है, जब तक कि वह इस चक्र में जी रहा है इसीलिए भोग, निद्रा और संभोग पर संयम रखते हुए इस चक्र पर लगातार ध्यािन लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। इसको जाग्रत करने का दूसरा नियम है यम और नियम का पालन करते हुए साक्षी भाव में रहना।

 

प्रभाव :-

इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए वीरता, निर्भीकता और जागरूकता का होना जरूरी है।

 

2)    स्वाधिष्ठान चक्र :-

 

यह वह चक्र है, जो लिंग मूल से चार अंगुल ऊपर स्थित है जिसकी : पंखुड़ियां हैं। अगर आपकी ऊर्जा इस चक्र पर ही एकत्रित है तो आपके जीवन में आमोद-प्रमोद, मनोरंजन, घूमना-फिरना और मौज-मस्ती करने की प्रधानता रहेगी। यह सब करते हुए ही आपका जीवन कब व्यतीत हो जाएगा आपको पता भी नहीं चलेगा और हाथ फिर भी खाली रह जाएंगे।

 

कैसे जाग्रत करें :-

जीवन में मनोरंजन जरूरी है, लेकिन मनोरंजन की आदत नहीं। मनोरंजन भी व्यक्ति की चेतना को बेहोशी में धकेलता है। फिल्म सच्ची नहीं होती लेकिन उससे जुड़कर आप जो अनुभव करते हैं वह आपके बेहोश जीवन जीने का प्रमाण है। नाटक और मनोरंजन सच नहीं होते।

 

प्रभाव :-

इसके जाग्रत होने पर क्रूरता, गर्व, आलस्य, प्रमाद, अवज्ञा, अविश्वास आदि दुर्गणों का नाश होता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि उक्त सारे दुर्गुण समाप्त हो तभी सिद्धियां आपका द्वार खटखटाएंगी।

 

3)   मणिपुर चक्र :- 

 

नाभि के मूल में स्थित रक्त वर्ण का यह चक्र शरीर के अंतर्गत मणिपुर नामक तीसरा चक्र है, जो दस कमल पंखुरियों से युक्त है। जिस व्यक्ति की चेतना या ऊर्जा यहां एकत्रित है उसे काम करने की धुन-सी रहती है। ऐसे लोगों को कर्मयोगी कहते हैं। ये लोग दुनिया का हर कार्य करने के लिए तैयार रहते हैं।

 

कैसे जाग्रत करें :-

आपके कार्य को सकारात्मक आयाम देने के लिए इस चक्र पर ध्यान लगाएंगे। पेट से श्वास लें।

 

प्रभाव :- 

इसके सक्रिय होने से तृष्णा, ईर्ष्या, चुगली, लज्जा, भय, घृणा, मोह आदि कषाय-कल्मष दूर हो जाते हैं। यह चक्र मूल रूप से आत्मशक्ति प्रदान करता है। सिद्धियां प्राप्त करने के लिए आत्मवान होना जरूरी है। आत्मवान होने के लिए यह अनुभव करना जरूरी है कि आप शरीर नहीं, आत्मा हैं।  आत्मशक्ति, आत्मबल और आत्मसम्मान के साथ जीवन का कोई भी लक्ष्य दुर्लभ नहीं।

 

4)   अनाहत चक्र :-

 

हृदय स्थल में स्थित स्वर्णिम वर्ण का द्वादश दल कमल की पंखुड़ियों से युक्त द्वादश स्वर्णाक्षरों से सुशोभित चक्र ही अनाहत चक्र है। अगर आपकी ऊर्जा अनाहत में सक्रिय है, तो आप एक सृजनशील व्यक्ति होंगे। हर क्षण आप कुछ कुछ नया रचने की सोचते हैं। आप चित्रकार, कवि, कहानीकार, इंजीनियर आदि हो सकते हैं।

 

कैसे जाग्रत करें :-

हृदय पर संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है। खासकर रात्रि को सोने से पूर्व इस चक्र पर ध्यान लगाने से यह अभ्यास से जाग्रत होने लगता है और सुषुम्ना इस चक्र को भेदकर ऊपर गमन करने लगती है।

 

प्रभाव :- 

इसके सक्रिय होने पर लिप्सा, कपट, हिंसा, कुतर्क, चिंता, मोह, दंभ, अविवेक और अहंकार समाप्त हो जाते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से व्यक्ति के भीतर प्रेम और संवेदना का जागरण होता है। इसके जाग्रत होने पर व्यक्ति के समय ज्ञान स्वत: ही प्रकट होने लगता है। व्यक्ति अत्यंत आत्मविश्वस्त, सुरक्षित, चारित्रिक रूप से जिम्मेदार एवं भावनात्मक रूप से संतुलित व्यक्तित्व बन जाता हैं। ऐसा व्यक्ति अत्यंत हितैषी एवं बिना किसी स्वार्थ के मानवता प्रेमी एवं सर्वप्रिय बन जाता है।

 

5)  विशुद्ध चक्र :-

 

कंठ में सरस्वती का स्थान है, जहां विशुद्ध चक्र है और जो सोलह पंखुरियों वाला है।सामान्यतौर पर यदि आपकी ऊर्जा इस चक्र के आसपास एकत्रित है तो आप अति शक्तिशाली होंगे।

 

कैसे जाग्रत करें :-

कंठ में संयम करने और ध्यान लगाने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

 

प्रभाव :-

इसके जाग्रत होने कर सोलह कलाओं और सोलह विभूतियों का ज्ञान हो जाता है। इसके जाग्रत होने से जहां भूख और प्यास को रोका जा सकता है वहीं मौसम के प्रभाव को भी रोका जा सकता है।

 

6)   आज्ञाचक्र :-

 

भ्रूमध्य (दोनों आंखों के बीच भृकुटी में) में आज्ञा चक्र है। सामान्यतौर पर जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहां ज्यादा सक्रिय है तो ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है लेकिन वह सब कुछ जानने के बावजूद मौन रहता है। इसे बौद्धिक सिद्धि कहते हैं।

 

कैसे जाग्रत करें :- 

भृकुटी के मध्य ध्यान लगाते हुए साक्षी भाव में रहने से यह चक्र जाग्रत होने लगता है।

 

प्रभाव :-

यहां अपार शक्तियां और सिद्धियां निवास करती हैं। इस आज्ञा चक्र का जागरण होने से ये सभी शक्तियां जाग पड़ती हैं और व्यक्ति एक सिद्धपुरुष बन जाता है।

 

7)   सहस्रार चक्र : -

 

सहस्रार की स्थिति मस्तिष्क के मध्य भाग में है अर्थात जहां चोटी रखते हैं। यदि व्यक्ति यम, नियम का पालन करते हुए यहां तक पहुंच गया है तो वह आनंदमय शरीर में स्थित हो गया है। ऐसे व्यक्ति को संसार, संन्यास और सिद्धियों से कोई मतलब नहीं रहता है।

 

कैसे जाग्रत करें :-

मूलाधार से होते हुए ही सहस्रार तक पहुंचा जा सकता है। लगातार ध्यान करते रहने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है और व्यक्ति परमहंस के पद को प्राप्त कर लेता है।

 

जय माँ बगलामुखी |

आचार्य अशोक नारायण

9312098199

Wednesday, 2 December 2020

मूलाधार चक्र कैसे जागृत करें?


 मूलाधार चक्र कैसे जागृत करें?


    सप्त चक्रों के क्रम मे मूलाधार पहला चक्र है, इस चक्र के जाग्रत होने पर व्यक्ति के भीतर वीरता, निर्भीकता और आनंद का भाव जाग्रत हो जाता है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति मे सुधार होता है तथा उसकी समाजिक असुरक्षा दूर होती है । 

    व्यक्ति के शरीर का मध्य भाग व इसके अंग गुप्तांग, गुर्दे, लिवर आदि का स्वास्थ्य उतम रहता है । ऊर्जा की प्रबलता बनी रहती है तथा मूलाधार से आगे के चक्रों मे बढने मे सुविधा हो जाती है । इस चक्र के जागृत होने से भगवान गणेश जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है ।


मूलाधार जागृति के लिये निम्न बाते बहुत जरुरी है  :-


    मूलाधार चक्र का रंग लाल है अतः लाल रंग की वस्तुओं को अपने समीप रखना व लाल रंग के खाध पदार्थों का उपभोग करना उतम है, इसके इलावा कुछ ऐसे व्यायाम करना जिससे हमारे शरीर के मध्य भाग मे जोर पडे जैसे उठक-बैठक, दौडना, टहलना आदि लाभदायक है। कुछ योग आसन जैसे भुजंंग आसन, धनुरसन, चक्र आसन, कुर्सी आसन आदि भी मूलाधार जागृति करते है, कपालभाति, अग्निसार, भस्त्रिका आदि प्राणायाम भी मूलाधार मे  जाग्रति लाते है । इसके इलावा ताड़न क्रिया, अश्वनी मुद्रा भी बहुत प्रभावी है ।


इस चक्र के देवता श्री गणेश है अतः इस चक्र पर ध्यान लगाते हुए भगवान गणेश जी के मंत्र का जाप करने से यह चक्र जागृत होता है ।  मंत्र इस प्रकार है : ॐ गं गणपतये नम:


निम्नलिखित ध्यान से भी आप मूलाधार जागृति कर सकते है। 


किसी भी ध्यानात्मक आसन में बैठ जाएं। अपने दोनों हाथों को ज्ञान मुद्रा में रखें तथा अपनी आंखों को बन्द करके रखें। अपनी गर्दन, पीठ व कमर को सीधा करके रखें। अब सबसे पहले अपने ध्यान को गुदा द्वार व जननेन्द्रिय के बीच स्थान मे मूलाधार चक्र पर ले जाएं। फिर मूलाधार चक्र पर अपने मन को एकाग्र व स्थिर करें और अपने मन में चार पंखुड़ियों वाले बन्द लाल रंग वाले कमल के फूल की कल्पना करें। फिर अपने मन को एकाग्र करते हुए उस फूल की पंखुड़ियों को एक-एक करके खुलते हुए कमल के फूल का अनुभव करें।

     इसकी कल्पना के साथ ही उस आनन्द का अनुभव करने की कोशिश करें। उसकी पंखुड़ियों तथा कमल के बीच परागों से ओत-प्रोत सुन्दर फूल की कल्पना करें। इस तरह कल्पना करते हुए तथा उसके आनन्द को महसूस करते हुए अपने मन को कुछ समय तक मूलाधार चक्र पर स्थिर रखें।


अथवा 

    शांत होकर, आँखे बंद करके, कमर को सीधा रखते हुए, ध्यानस्थ मुद्रा मे बैठ जाये, अब अपना पुरा ध्यान अपनी आती जाती श्वास पर लाये और जब भी श्वास अंदर आये तो " औम" और जब भी श्वास बाहर आये तो " लं  " बीज मंत्र का मानसिक उचारण करे 


 🙏  जय मां बगलामुखी 🙏

     आचार्य अशोक नारायण       

          9312098199

होलाष्‍टक से रहे सावधान न करें ये काम - आचार्य अशोक नारायण

 होलाष्‍टक से रहे सावधान न करें ये काम            सोमवार 27 फरवरी , 2023 से होलाष्टक लगने जा रहा है |  यह 8 दिनों का होता है और ...