Renowned Astrologer and Vastu Acharya Ashok Narayann is a world acclaimed godly person. This blog will provide deep insights and roots of Spirituality and how we can apply them. Narayannji has an exemplarily, quintessential acumen in predicting and providing remedies through Astrology, Vastu and other Spiritual Sciences. He organizes/ performs various religious/ spiritual Havans/ Pooja’s of Das Mahavidyas for the betterment of Individuals and Society.
Wednesday, 6 October 2021
Sunday, 3 October 2021
मूल नक्षत्र - आप पर असर, उपाय - आचार्य अशोक नारायण
क्या है मूल नक्षत्र, कैसे डालता है आप पर असर?
ज्योतिष की सटीक व्याख्या और फल के लिए हमेशा नक्षत्रों पर विचार किया जाता है| शास्त्रों में नक्षत्र भी कई प्रकार के होते है। इन नक्षत्रों का लोगों के जीवन में भी बहुत प्रभाव पड़ता है। उग्र और तीक्ष्ण स्वभाव वाले नक्षत्रों को मूल नक्षत्र, गंडात कहते हैं।
ज्योतिषशास्त्र में कहा गया है कि गण्डमूल नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक स्वयं व अपने माता-पिता, मामा आदि के लिए कष्ट प्रदान करने वाला होता है।
मूल नक्षत्र में जन्म लेने वाला बालक शुभ प्रभाव में है तो वह सामान्य बालक से कुछ अलग विचारों वाला होता है | ऐसे बालक तेजस्वी और यशस्वी होगा । अशुभ प्रभाव में है तो इसी नक्षत्रों में जन्मा बच्चा क्रोधी, रोगी, र्इष्यावान होगा। इस अशुभता की शुभता के लिए गण्डमूल दोष की विधिवत शांति करा लेना चाहिए।
कैसे बनता है मूल नक्षत्र?
राशि और नक्षत्र के एक ही स्थान पर उदय और मिलन के आधार पर गण्डमूल नक्षत्रों का निर्माण होता है। इसके निर्माण में 6 स्थितियां बनती हैं। इसमें से तीन नक्षत्र गण्ड के होते हैं और तीन मूल नक्षत्र के होते है।
कर्क राशि तथा आश्लेषा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती है वही सिंह राशि का समापन और मघा राशि का उदय एक साथ होता है। इसी कारण से अश्लेषा गण्ड और मघा मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।
वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र की समाप्ति एक साथ होती हैं तथा धनु राशि और मूल नक्षत्र का आरम्भ यही से होता है। इसलिए इस स्थिति को ज्येष्ठा गण्ड और मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।
मीन राशि और रेवती नक्षत्र एक साथ समाप्त होते हैं तथा मेष राशि व अश्विनि नक्षत्र की शुरुआत एक साथ होती है। इसलिए इस स्थिति को रेवती गण्ड और अश्विनि मूल नक्षत्र कहा जाता हैं।
मुला मघा और अश्विनी के प्रथम चरण का जातक पिता के लिए, रेवती के चौथे चरण और रात्रि का जातक माता के लिए, ज्येष्ठ के चतुर्थ चरण और दिन का जातक पिता तथा आश्लेषा के चौथे चरण संध्याकाल में जन्म हो तो स्वयं के लिए जातक हानिकारक होता है।
उपाय
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार यदि बच्चे का जन्म गंडमूल नक्षत्र में हुआ है तो उसके पिता को चाहिए कि बच्चे का चेहरा न देखे | ऐसा मानते हैं कि पिता को नवजात का मुख नहीं देखना चाहिए, जबतक इसकी शांति ना करवा ली जाए।
मूल नक्षत्र के दुष्प्रभाव की संभावना हो तो- जन्म के 27 दिन बाद वही नक्षत्र आने पर मूल नक्षत्र की शांति करवा लें। इसके अलावा ब्राह्मणों को दान, दक्षिणा देनी चाहिए और उन्हें भोजन करवाना चाहिए।
मूल नक्षत्र के कारण बच्चे की सेहत कमजोर रहती है तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का व्रत रखना चाहिए।
राशि मेष और नक्षत्र अश्विनी है तो बच्चे को हनुमान जी की उपासना करवाएं, राशि सिंह और नक्षत्र मघा है तो बच्चे से सूर्य को जल अर्पित करवाएं। बच्चे की राशि धनु और नक्षत्र मूल है तो गुरु और गायत्री उपासना करवाएं, राशि कर्क और नक्षत्र आश्लेषा है तो शिव की उपासना करवाएं। वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा नक्षत्र होने पर हनुमान जी की उपासना करवाएं, राशि मीन और नक्षत्र रेवती है तो गणेश जी की पूजा करें।
आचार्य अशोक नारायण
9312098199
होलाष्टक से रहे सावधान न करें ये काम - आचार्य अशोक नारायण
होलाष्टक से रहे सावधान न करें ये काम सोमवार 27 फरवरी , 2023 से होलाष्टक लगने जा रहा है | यह 8 दिनों का होता है और ...
-
तिलक लगाने के लाभ : - चंदन का तिलक : - चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा ...
-
होलाष्टक से रहे सावधान न करें ये काम सोमवार 27 फरवरी , 2023 से होलाष्टक लगने जा रहा है | यह 8 दिनों का होता है और ...
-
Astrological Predictions Danger of COVID, World War, Fortune of Politics - Acharya Ashok Narayann The most dreadful disease Covid whic...