Tuesday, 19 January 2021

कौन हैं शिव? - आचार्य अशोक नारायण

                 

                       कौन हैं शिव?


शिव जिसका अर्थ हैकल्याणकारी या शुभकारी। 

यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है।शिका अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकिका अर्थ देने वाला यानी दाता।

शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है।

शिवलिंग का अर्थ है : - शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।

शिव, शंकर, महादेव!

शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते है, कि शिव शंकर भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।

अर्द्धनारीश्वर : -

शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं।


दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिवशिव होकरशवरह जाता है।


नीलकंठ : -

अमृत पाने की इच्छा से जब देव-दानव बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे, तभी समुद से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे।


देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। शिवजी ने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव खत्म कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

 


भोले बाबा : -

शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एकबार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा। कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं।

बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि


शिकारी को अपने शुभ काम का अहसास था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं।



शिव स्वरूप : - 

भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं : -

जटाएं : - शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।

चंद्र : - चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चंद्र की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।

त्रिनेत्र : - शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु, पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।

सर्पहार : - सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है।

त्रिशूल : - शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।

डमरू : - शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा नाद है।

मुंडमाला : शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।

छाल : - शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर लिया है।

भस्म : - शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है।

वृषभ : - शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है।


 महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं। इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट अनंत है, महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।



| ॐ नमः शिवाय |

|जय माँ बगलामुखी |


आचार्य अशोक नारायण

Monday, 18 January 2021

मृत्यु के चौदह प्रकार : रावण-अंगद संवाद --आचार्य अशोक नारायण

                            मृत्यु के चौदह प्रकार : रावण-अंगद संवाद


 राम-रावण युद्ध चल रहा था, तब अंगद ने रावण से कहा - तू तो मरा हुआ है, मरे हुए को मारने से क्या फायदा

रावण बोला - मैं जीवित हूँ, मरा हुआ कैसे?

अंगद बोले, सिर्फ साँस लेने वालों को जीवित नहीं कहते - साँस तो लुहार की धौंकनी भी लेती है!

तब अंगद ने मृत्यु के 14  प्रकार बताए : -

अंगद द्वारा रावण को बताई गई ये बातें सर्वकालिक हैं। यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी मौजूद है, तो वह मृतक समान माना जाता है! रामचरितमानस के लंका काण्ड का यह प्रसंग अत्यंत सारगर्भित और शिक्षणीय है : -

कौल कामबस कृपिन विमूढ़ा।

अतिदरिद्र अजसि अतिबूढ़ा।।

सदारोगबस संतत क्रोधी।


विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी।।

तनुपोषक निंदक अघखानी।

जीवत शव सम चौदह प्रानी।।

 

1)  कामवश : - जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होतीं और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नहीं करता है, सदैव वासना में लीन रहता है।

2)  वाम मार्गी : - जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले, जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो; नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

3)  कंजूस : - अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याणकारी कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो, दान करने से बचता हो, ऐसा आदमी भी मृतक समान ही है।

4)  अति दरिद्र : - गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। गरीब आदमी को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योंकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। दरिद्र-नारायण मानकर उनकी मदद करनी चाहिए।

5)  विमूढ़ : - अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ ही होता है। जिसके पास बुद्धि-विवेक न हो, जो खुद निर्णय न ले सके, यानि हर काम को समझने या निर्णय लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृतक समान ही है, मूढ़ अध्यात्म को नहीं समझता।

6)  अजसि : - जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर-परिवार, कुटुंब-समाज, नगर-राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता, वह व्यक्ति भी मृत समान ही होता है।

7)  सदा रोगवश : - जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मृत्यु की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8)  अति बूढ़ा : - अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों अक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार वह स्वयं और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

9)  सतत क्रोधी : - 24 घंटे क्रोध में रहने वाला व्यक्ति भी मृतक समान ही है। ऐसा व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता। पूर्व जन्म के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरकगामी होता है।

10)  अघ खानी : - जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है और पाप की कमाई से नीच गोत्र, निगोद की प्राप्ति होती है।

11)  तनु पोषक : - ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना न हो, ऐसा व्यक्ति भी मृतक समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकी किसी अन्य को मिलें न मिलें, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्योंकि यह शरीर विनाशी है, नष्ट होने वाला है।

12)  निंदक : - अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियाँ ही नजर आती हैं, जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता है, ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे, तो सिर्फ किसी किसी की बुराई ही करे, वह व्यक्ति भी मृत समान होता है। परनिंदा करने से नीच गोत्र का बंध होता है।

13)  परमात्म विमुख : - जो व्यक्ति ईश्वर यानि परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति यह सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं; हम जो करते हैं, वही होता है, संसार हम ही चला रहे हैं, जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

14)  श्रुति, संत विरोधी : - जो संत, ग्रंथ, पुराणों का विरोधी है, वह भी मृत समान है। श्रुत और संत, समाज में अनाचार पर नियंत्रण (ब्रेक) का काम करते हैं। अगर गाड़ी में ब्रेक हो, तो कहीं भी गिरकर एक्सीडेंट हो सकता है। वैसे ही समाज को संतों की जरूरत होती है, वरना समाज में अनाचार पर कोई नियंत्रण नहीं रह जाएगा।


अतः मनुष्य को उपरोक्त चौदह दुर्गुणों से यथासंभव दूर रहकर स्वयं को मृतक समान जीवित रहने से बचाना चाहिए।

 

               जय मांबगलामुखी 

           आचार्य अशोक नारायण 


होलाष्‍टक से रहे सावधान न करें ये काम - आचार्य अशोक नारायण

 होलाष्‍टक से रहे सावधान न करें ये काम            सोमवार 27 फरवरी , 2023 से होलाष्टक लगने जा रहा है |  यह 8 दिनों का होता है और ...